कोरोना के नए बहुरूप ओमिक्रोन देश के लगभग 16 राज्य मे पहुँच गया है कोरोना के मामले दिल्ली,महाराष्ट्र, कर्नाटक, आदि राज्यों मे मामले बढ़ रहे हैं दिल्ली एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने सावधान किया हैं कि कोरोना की तीसरी लहर आयेगी जिसे सतर्कता बरतना ज़रूरी है ।। देश मे फिर से चुनाव रैली का दौर आ गया है नेता तो नेता प्रधानमंत्री भी ये भूल जाते है कि कोरोना की रफ्तार बढ़ रही है , चुनाव का खास उत्सव तो उत्तर प्रदेश, और उत्तरा खंड मे दिख रहा है खास कर उत्तर प्रदेश इससे ये तो साफ़ नज़र आता हैं कि आम और खास का फ़र्क कितना है ।। प्रधानमंत्री एक समय बनारस मे बड़ी रैलियां करते है और भारी भीड़ देख कर बहुत खुश होते है जनता भी अपना उत्साह दिखाती है , लेकिन प्रधान मंत्री यह नही कहते कि "दो गज की दूरी" मास्क हैं जरूरी" फलाना नुमायदे तो सिर्फ़ मंत्री मंडल के सम्बोधन मे दिखते हैं । बंगाल के चुनाव हुए तो उसमें भी पूरी भाजपा सरकार बंगाल मे रैलियां रॉड शोव करने के लिए कूद पड़ीं, उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव मे भी हज़ारों शिक्षकों की मौत हुई , हमने देखा गंगा मे बहती लाश, आम जनता की स्वास्थ्य की कमी से मौत , ऑक्सीजन की कमी, उन दिनों एक लाइन चली, जिंदा आदमी लाख मरा तो ख़ाक का , हम से कोई नही भुला है वो डरावना मंजर ओर सरकार के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नही है की ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत हुई फिर वो सभी तस्वीरें समाचार मे सब बनाया हुआ झूट हैं ?देश मे दो साल से शिक्षा के संस्थान, कॉलेज, स्कूल, बंद है कई सरकारी परीक्षायें कोरोना के नाम से हो नही रही या स्थगित कर दी गई , लेकिन चुनाव होंगे जोर शोर से दम खम से रैलियां हो रही है चुनाव जरूरी है देश के उज्वल भविष्य से ज्यादा स्कूलों , सरकारी दफ्तरों मे नियमों के सख्त नियम है लेक़िन चुनावों मे क्यो नही सिर्फ इसिलए की उसे संबोधन देश के प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री या अन्य मंत्री करेंगे ,कोरोना बढ़ने से कारण पूर्णबन्दी, नाईट कर्फ़्यू, जैसी कई पांबन्दी लगती है लेक़िन इससे तकलीफ़ आम जनता को होती हैं उनका रोज़गार, रोटी तक के लिए वो मोहताज़ होते है वो मज़दूर जो वोट इसी सरकार को देता है लेक़िन पता उसे क्या उम्मीद होती होंगी । हाल मे आये इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश मे प्रधानमंत्री और चुनाव अयोग से आग्रह किया हैं " टाले जाए उत्तर प्रदेश चुनाव दो माह के लिए , रैलियों पर लगे रोक , हाई कोर्ट को प्रधानमंत्री और चुनाव अयोग से आग्रह हैं " लेकिन चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर संदेह होता जब मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्र जब सरकार के बैठक मे शामिल हो जाते है तो निष्पक्षता पर संदेह होना संभव है जबकि सरकार और चुनाव आयोग के बीच संवाद का संपर्क होता है तो वह लिखित होता है , लेकिन क्या प्रधानमंत्री और चुनाव आयोग कोरोना के नए वेरियंट की ओमिक्रोन की बढ़ने की क्षमता को समझ कर जनता के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का परामर्श अमल मे लाएगी ।।

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