प्रेस की वर्तमान चुनौती

प्रेस ने  स्वतन्त्रता के लिए जैसा संघर्ष किया वो प्रेस, मीडिया अब मीडिया नही है आजादी के बाद प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बना मीडिया ने कार्यपालिका,
न्यायपालिका, विधायिका,  की प्रहरी बनी ।
प्रेस ने जो स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष और अंग्रेजों द्वारा जेल मे भरने ओर कई पत्रकारों पर मुक़दमे चले वह तो गिने नही जा सकते है ,लेकिन आज ऐसी पत्रकारिता करना नामुकिन है ,टेलीविज़न मीडिया ने अपनी जो साख बनाई ओर अब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ नही बल्कि सरकार के उंगली पर चलने वाली मीडिया है , कहना गलत नही यह होगा गोदी मीडिया है ।
वर्तमान मे बेरोजगरि, मॅहगाई, कई सरकारी दफ्तरों मे पदों का खाली रहना ,स्कूल कॉलेज मे टीचर्स की आवश्कता की आपूर्ति , हर चीज़ का निजीकरण हवाईअड्डा, बैंक , PSUs, रेलवे ,सरकार का जो भी हिस्सा था वह अब निजिकरण करेगी , क्या इन से बेरोजगारी दर और त्रस्त नही होगी ,कोरोना के कारण पूर्णबन्दी मे दौरान दिल्ली के एयरपोर्ट से चार लाख कर्मचारियों को निकाल दिया गया था , अर्थव्यवस्था इतनी खराब हो चुकी है कि अब सरकार हर किसी का निजीकरण करेगी , बैंक के निजीकरण के विरोध बैंक कर्मचारी हड़ताल कर रहे है , विशाखापट्नम लगभग 35 दिनों से एक कपनी के निजीकरण के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे है  कर्मचारी, क्या मीडिया को ऐसी समस्याओं को आमजन की आवाज़ को सरकार का पहुँचना चाइये लेकिन टेलीविजन मिडिया सरकार के पीछे पीछे चल रही है बंगाल चुनाव को इतने अलग अलग तरीके सारे चैनल दिखाते है जैसे देश की अन्य समस्या हल हो चुकी हो।
मनदीप पुनिया,रक्षित सिंह जैसे कम पत्रकार मिलेंगे जो अभी भी पत्रकारिता अपनी कलम जिंदा रखे हुए है । इन्ही निडर ,निर्भीक, पत्रकार की जनता की आवाज बना होगा।
सोचने वाली बात ये है क्या चुनाव के सामने देश की सारी समस्या ख़त्म हो चुकी है? नही वो जमीनी हक़ीक़त तो बताने लगी तो उनके चैनल बंद हो जाएंगे 
उनकी नॉकरी खतरे में पड़ जाएगी जान को खतरा होगा ,हालांकि मीडिया को सरकार के प्रचार के लिए पैसा मिलता है तो मीडिया क्यों सरकार के खिलाफ बोलने लगी अगर जनता को सुंषशान्त सुसाइड केस मे क्या हुआ बॉलीवुड मे डर्कस का आदि कौन है जैसी खबरों से चैनल भरा पड़ा है सरकार से ये सवाल नही कर सकते ,
इन्ही को गोदी मीडिया नाम दिया गया जिसकी गोद सरकार है। 

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