बैंको का निजीकरण करने मे सरकार रफ़्तार से आगे बढ रही है इसके विरोध मे बैंक यूनियन ने पिछले हफ़्ते के 2 दिन निजीकरण के विरूद्ध प्रदर्शन भी किया गया सरकार ने अपने इस बार बजट सत्र मे चार बैंकों का निजीकरण का ऐलान किया था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने आम बजट मे दो बैंको के निजिकरण की घोषणा की ,बड़े जानकारों का कहना है कि सरकार के निजीकरण की नीतियों का अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है जरूर इसका प्रभाव होने वाले चुनावों मे भी दिख सकता है ।बैंको के निजिकरण के कारण बैंक कर्मचारियों ने जोर दार प्रदर्शन किए जिसे बैंक मे निकासी लेन देन, ऋण प्रक्रिया बैंकिंग सेवाएं प्रभावित रही जिसे आम नागरिक को समस्या का सामना करना पड़ा , सरकार ने IDBIबैंक का निजीकरण कर दिया था ,ओर कई इन्ही सालो मे 27 बैंको का विलय कर के 12बैंक कर दिए गए सार्वजनिक बैंको को सरकारी बैंकों के साथ विलय हुआ ।पिछले हफ़्ते 2 दिन बैंक कर्मचारियों के ज़रिए हुए प्रदर्शन मे कर्मियों ने अपने दो दिन की वेतन भी कटवाया यह विरोध का एक नया तरीका देखने को भी मिला , बैंक यूनियन के कई तर्क भी है जिसमें वे कहते है कि निजीकरण से रोज़गार की मांग घटेंगी, बैंकों मे ऐसे भी पोस्टर देखने को मिले की जिसमें वह अपने ग्रहको को बता रहे हैं कि सरकार आपका बैंक बेच रही है बाद मे बोलना नही बताया नही जैसे वाक्य जब होते है तो ग्राहकों का भी डरना वाज़िब है ।हम अब तक नहीं भूले होंगे कि यस बैंक एक निजी बैंक है और जब यह डूबा तब सरकार उसे एक सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को सोपा गया है , अक्सर बैंक डूबने के कारण होते है कर्ज़ माफी , किसी उद्योग पति का अरबों करोड़ो रूपये लेकर फाफर होना या दिवालिया घोषित कर देना , कई तरह के लोन बैंक देती है शिक्षा,किसान, और भी लेकिन सरकारे अपने फायदे के लिए इन्हें लोन माफ़ करने का आदेश देती है जिसका भारी घाटा बैंक को उठाना पड़ता है , बड़े अर्थशास्त्री अक़्सर यह कहते है कि कर्ज़ माफ़ी कोई उपाय नहीं , यह हमारी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुँचता है जिसे आमजन के बैंकों सरकार पर विश्वास खत्म होगा। SBI, PUB, CBI बैंको को सरकार की तरफ़ से यही हिदायत दी गई थी कि वह इन प्रदर्शन मे शामिल न हो लेकिन बावजूद कर्मी हड़ताल मे शामिल हुए,सरकार के बैंको के निजीकरण करने या मौद्रीकरण कहे यह तर्क है कि बैंक नुकसान मे चल रहे है लेकिन अगर सरकारी बैंक निजीकरण कर दिए जाएं तो क्या गारंटी है निजी बैंक नहीं डूबते तब कौनसा सरकारी बैंक होगा जो सरकार उसे वो बैंक देगी , सरकार उस प्रक्रिया को वापस घुमा रही है जिसे आजदी के बाद सरकार ने डूबे बैंको का कानून बना कर उन बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया लेकिन आज सरकार उसे निजीकरण की और ले जाना सही समझती है , क्या सरकारी बैंक मे आमजन अपना पैसा रखना जितना सुरक्षित मेहसूस करती है निजी बैंक पर वह विश्वास क़ायम हो सकता है कुछ चीज़ें लुभावनी होती ।हालांकि अब तक शीतकालीन सत्र मे दो बैंको के निजीकरण पर वह बिल पटल पर नही रखा गया ,सरकार को अपने बैंकों के निजिकरण पर एक ओर विचार विमर्श करना चाइये इन संगठनों से बातचीत से अवश्य हल निकल सकते है, लेकिन अगर सरकार बैंक कर्मचारियों के प्रदर्शन को किसान आंदोलन जैसे नज़र करती है तो यह विकट समस्या का रूप ले सकती है ।
निवेश के बहाने
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