सूर्यकांय त्रिपाठी निराला
महाप्राण निराला के जन्मदिन के अवसर पर
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला आधुनिक युग के नए कवियों में महाप्राण निराला सदा निराले रहे। इनका जन्म 21 फरवरी 1896 बंगाल के महिषादल जिला मेदनीपुर मे हुआ उस दिन सरस्वती पूजन था । निराला अपने परिवार को खोने के बाद इलाहाबाद आगए और जीवन भर वही रहे । निराला अपनी लेखनी ने 1915 से शुरू की परंतु इनका पहला काव्य संग्रह ' परिमल ' 1929 मे प्रकाशित हुआ ।
निराला का नाम सूर्यकुमार उनकी माँ ने रखा था निराला ने स्वयं अपने नाम को बदलकर सूर्यकांत रखा ।
इनका उपनाम निराला है इन्होंने ये उपनाम जब रखा जब वे साहित्यक पत्रिका मतवाला से जुड़े निराला निराले मतवाले भी कहे जाते है ।
निराला को छायावाद युग के चार स्तम्भ जयशंकर प्रसाद , सुमित्रानंदन पंत महादेवी वर्मा और निराला इस स्तम्भ के प्रमुख माने जाते है इन्हें छायावाद स्तम्भ का शिवशंकर कहा जाता है । निराला ने कविताएं , उपन्यास , नाटक , कहानियां , अनुवाद तथा सभी विधाओं मे उत्कृष्ट लेखनी की परंतु इन्हें कविताओं के लिए मुख्य रूप से ख्याति मिली है । निराला मुक्तछंद कविता के जनक है इनकी कविता जूही की कली मुक्तछंद रचना है ।
निराला ने लिखा अपने शब्दों में लिखा है ' देखते नहीं मेरे पास एक कवि की वाणी , कलाकार के हाथ , पहलवान की छाती और दार्शनिक पैर है ।
जयशंकर प्रसाद ने निराला के लिए कहा था , निराला हिंदी को ईश्वर की देन है निराला ने नए प्रयोगों के माध्यम से विश्व भाषा के मार्ग पर जाने के लिए रास्ता तैयार किया । निराला ने हिंदी भाषा की अस्मिता के लिए जो संघर्ष किया और जितने मानक व्यक्तिव से संघर्षक रहे उतना हिंदी के लिए कम लोगो ने किया ।
निराला घोर अहंवादी है दूसरी ओर वे अपनी उदार करुणा के कारण ग़रीब , पददलितों के पक्षधर थे इनकी कविता ' वह तोड़ती पत्थर मैंने देखा उसे इलाहाबाद के पथ पर ' ये कविता साम्राज्य वाद पर चोट करती है
निराला की कविताएं पूर्ण यर्थाथ कठोरता को समेटे हुए है ।
निराला ने मुक्तछंद पर अपनी रचना परिमल मे लिखा , मनुष्यों की मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता को मुक्ति छन्दों के शासन से अलग करना है जिस प्रकार मुक्त मनुष्य कभी किसी तरह का दुसरो के प्रति आचरण नहीं रखता इसी तरह कविता का भी यही हाल है इस तरह निराला की हिंदी भाषा के लिए स्वंतत्र चेतना ने हिंदी कविता को एक नया शास्त्र दिया एक नया परवाह नई दिशा दी इसलिए मुक्तछंद के जनक महाप्राण निराला है ।
कई साहित्यकार मानते है की अगर निराला ने सिर्फ तीन रचना भी लिखी होती तब भी वे सदा हिंदी के महाप्राण होते ।
1 . सरोज स्मृति
2 .राम की शक्ति पूजा
3.सरस्वती वंदना वर दे वीणा वादिनी
निराला ने प्रगतिवाद , प्रयोगवाद , नई कविता , समसामयिक विषयों पर काव्य चेनता प्रकट हुई ।
निराला की रचना कुकुरमुत्ता , भिक्षुक , विधवा जैसी कविताओं पर रूढ़िगत समाज का चित्र अंकित है यहाँ निराला जी का प्रगतिवाद दृष्टि कोण प्रकट हुआ है ।
निराला जी के प्रयोगवाद की कविताएं नए शिल्प का प्रयोग है । इनकी ' बेला 'और अन्य कविताएं इसी परिपाटी की है ।
निराला एक अद्धभुत कवि है इन्होंने पूरे भारतीय समाज को प्रभावित किया है न केवल हिंदी काव्य को प्रभवित किया बल्कि जहाँ तक भी हिंदी की गूंज पहुँच सकी उन तमाम लोंगो को प्रभावित किया ।
निराला जी ने अपने संघर्षक और कठोर जीवन से 15 अक्टूबर 1961 मे इलाहाबाद मे अंतिम सांसे ली ।
महाप्राण निराला के जन्म दिन के अवसर पर शत शत नमन …
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